MITRA MANDAL GLOBAL NEWS

DHARM( Religion)

बेचना है :- प्राचीन दुर्लभ पत्र -पत्रिकाएं ,प्राचीन सिक्के ,पुराना मॉडल का टी वी ,मोबाइल सेट (चालू हालत में )
प्राचीन वस्तुअों के संग्रह के शौक़ीन व्यक्ति ही संपर्क करें।
संपर्क हेतु मोबाइल नंबर - +91 9424264555 ,9009647630
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धर्म एक ऐसा जंजाल है।
जहाँ आदमी बेहाल है।
धर्म एक ऐसा धंधा है
जहाँ आदमी अँधा है।
धर्म एक ऐसा खेल है
जहाँ टूटता मेल है।
धर्म एक ऐसा जंगल है
 जहाँ धूर्त ,पाखंडियों का मंगल है।
धर्म एक ऐसा तूफ़ान है
जहाँ आदमी बनता हैवान है।
धर्म एक ऐसा  दुधारू तलवार है
जहाँ बंट जाता भाई से भाई का प्यार है।
धर्म एक ऐसी रीति है
जैसे बालू पे टिकी भीति है।
धर्म एक ऐसी लहर है
जो ज़हर बनकर ढाती कहर है।
धर्म का ऐसा रूप है
कहीं छाँव तो कहीं धूप है।
धर्म एक ऐसी बीमारी है
बुर्जुवा समाज की यह लाचारी है।
             @  प्रमोद  श्रीवास्तव

Election reforms-II

भारत में चुनाव सुधार के  सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जून २००२ में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा यह आदेश जारी किया गया कि प्रत्येक प्रतिभागी को  शपथ -पत्र देना होगा ,जिसमें अर्जित सम्पत्ति के साथ -साथ आपराधिक प्रकरणों का ब्यौरा दर्ज करना अनिवार्य है।
 आचार -संहिता ,सुरक्षा -निधि में बढ़ोत्तरी ,राजनीतिक दलों का पंजीयन ,लेखा बही की अनिवार्यता ,जनप्रतिनिधित्व अधिनियम १९५० जो मुख्यतः निर्वाचन सूची की तैयारी तथा पुनः परीक्षण से सम्बंधित है ,के साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम १९५१ जो चुनाव के वास्तविक संचालन हेतु दिशा -निर्देश का कार्य करता है ,के द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष  चुनाव का प्रावधान किया गया है।
     भारत में धर्म ,जाति ,क्षेत्र ,भाषा तथा अन्य सामाजिक  भावनावों से ओत -प्रोत होकर मतदान करने की प्रवृति को दूर  करने के लिए सभी राजनीतिक दलों में आतंरिक लोकतंत्र का विकास करना होगा ,जिसे निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
 भारत के सभी राजनीतिक दल अपने ग्राम -पंचायत स्तर के सदस्यों के समूह से एक ग्राम पंचायत  अध्यक्ष का गुप्त मतदान के माध्यम से चुनाव करें।
 जनपद पंचायत स्तर पर उस जनपद में सम्मिलित सभी ग्राम पंचायत के अध्यक्ष  गुप्त मतदान द्वारा जनपद अध्यक्ष का चुनाव करें।
 विधान सभा स्तर पर उस विधान सभा में समावेशित सभी जनपद के अध्यक्ष  अपने दल के विधान सभा अध्यक्ष का चुनाव करें।
लोक सभा स्तर पर उस लोकसभा में समावेशित सभी विधान सभा के अध्यक्ष  अपने दल के लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव गुप्त मतदान प्रणाली से करें।
                          इस प्रकार से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए अपने प्रतिनिधियों को ही उस
स्तर पर चुनाव के लिए नामांकित किया जावे।
                             विभिन्न राजनितिक दलों द्वारा निर्धारित समय(०३ -०५  वर्ष )पर चुने गए अपने प्रतिनिधियों  का पुस्तिका रखा जाय ,जिसकी जांच राजनितिक दलो के पंजीयक द्वारा किया जाय।
                             भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने सदस्यों के समूह से अपने प्रतिनिधियो का चुनाव कर चुने हुए प्रतिनिधियों को चुनाव में भाग लेने का  टिकट दिए जाने की अनिवार्यता का कानून बनाये जाने से चुनाव की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता को और प्रभावी बनाया जा सकता है। 

Election Reforms

Election Reforms :-भारत की निर्वाचन प्रणाली में अनेक खूबियों के साथ कुछ बुराईयाँ हैं ,इन बुराईयों को दूर करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा भारत सरकार  को कई उपाय सुझाये गए हैं , इसके अतिरिक्त चुनाव सुधार  के लिए - समय पर कई समिति गठित की गई ,जिसका विवरण निम्नानुसार है।
१ -तारकुंडे समिति रिपोर्ट १९७५
२-गोस्वामी समिति रिपोर्ट १९९०
३ -वोरा समिति रिपोर्ट १९९३
४-इंद्रजीत समिति रिपोर्ट १९९८
५ डी  के जैन की अगुवाई में लॉ कमीशन की रिपोर्ट १९९९
६ -नेशनल कमीशन टू रिव्यु दि वर्किंग ऑफ़ दि कंस्टीटूयोंशन २००१
७ -भारत निर्वाचन आयोग २००४
८ -द्वितीय प्रशासनिकसुधार समिति की रिपोर्ट २००८
                                                 इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों ने चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए सरकार को बाध्य किया है। १९५० से १६ ओक्टूबर १९८९ तक एक सदस्यीय निकाय के रूप में भारत के चुनाव आयोग का कार्य रहा है। १६ अक्टूबर १९८९ से ०१ जनवरी १९९० (२ माह १५ दिन )तक तीन सदस्यीय रहा। ०१ जनवरी १९९० को फिर एक सदस्यीय बना  दिया गया। किन्तु अक्टूबर १९९३ में केंद्रीय सरकार की सिफारिस पर राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके निर्वाचन आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। दिसम्बर १९९३ में राष्ट्रपति के अध्यादेश को संसद ने पारित कर उसे कानूनी रूप दे दिया। टी एन शेषन द्वारा सरकार के इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने शेषन को संविधान के अनुसार अपनी मर्यादा में रहकर अन्य आयुक्तों के साथ मिलकर (सहयोग से )कार्य करने की हिदायत दी। भारतीय निर्वाचन प्रणाली में दागी (अपराधी )व्यक्तियों का चुनकर सांसद बनना तथा कार्पोरेट घरानों द्वारा चुनाव को प्रभावित कर अपने हित में अपने प्रतिनिधि के माध्यम से संसद का संचालन किया जाना एक गम्भीर समस्या है।
                                                                                                                                           (  शेष अगले अंक में )

Women-Day

मै अपने निजी वाहन से सपरिवार अंबिकापुर से जशपुर ,कुनकुरी ,गुमला होते रांची गया था.रास्ते में  भोजन की सुविधा उपलब्ध कराने वाले जशपुर ,कुनकुरी ,गुमला के किसी होटल में महिला शौचालय की व्यवस्था नहीं है। महिला -दिवस की सार्थकता के लिए यह अनिवार्य है कि सभी व्यवसायिक केन्द्रों ,परिसरों में स्वछ ,साफ -सुथरा  महिला शौचालय की सुविधा हो ,जिसका उपयोग महिलाओं द्वारा निःसंकोच किया जा सके। 

Election- Commission

मैंने पिछले अंक में भारतीय लोकतंत्र की कुछ समस्याओं का जिक्र किया था। हमारी लोकतंत्र की एक प्रमुख समस्या यह है कि योग्य ,सक्षम ,अनुभवी ,सही  व्यक्ति आज की  राजनीति में  नहीं आना चाहते हैं। आज  चुनाव , देश -सेवा का मंदिर न होकर कैशीनों (जुआ -घर ) में तब्दील हो चुका है ,जहाँ लोग करोड़ों खर्च कर एन -केन प्रकारेन अरबों रुपयें कमाने के ध्येय से आ रहे है। जनप्रतिनिधि के प्रति हमारी घटती हुई आश्था  लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है। भारतीय लोकतंत्र को न्यायालयों के निर्णय ने ही मजबूती से बांध रखा है ,अन्यथा अधिकांश सांसद जाति ,धर्म,क्षेत्र ,  भाषा ,गुटबाजी में बध्ध होकर लोकतंत्र का चीरहरण कर रहे है।
                                 
           भारतीय संविधान  के अनुसार भारत में लोकतंत्र की व्यवस्था की गई है। यह संविधान  के बुनियादी ढाँचा का हिस्सा है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य एवं अन्य ( A I R 1973 S C 1461 )के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा इसे स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया गया है। लोकतंत्र जनता का ,जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया गया राज्य होता है। भारतीय संविधान की लोकतंत्र की अवधारणा निर्वाचन के जरिये संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं  में जनप्रतिनिधित्व को मानती है। एन पी स्वामी वनाम निर्वाचन अधिकारी ,नामक्कल के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय दृष्टव्य है.(A I R 1952 S C 64 ). भारत जैसे बड़े देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की पद्धति कठिन है। अतः संविधान निर्माताओं ने अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की व्यवस्था की है। भारत में वर्त्तमान में कुल इक्यासी करोड़ पैतालीस लाख इक्यानवें हज़ार एक सौ चौरासी (814591184 ) मतदाता है ,कुल मतदाताओं में पुरुष ५२. ४ %एवं महिला मतदाताओं का प्रतिशत ४७. ६ है। विशाल मतदाताओं की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए लोकतंत्र की सफलता के लिए  तथा निष्पक्ष चुनाव होना अनिवार्य है। भारत में स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकार के रूप में निर्वाचन -आयोग की स्थापना की गई है।
  प्रारम्भ में संविधान -सभा की प्रारूप -समिति ने संघ तथा राज्यों के लिए अलग -अलग निर्वाचन आयोगों की व्यवस्था की थी ,जिसे संविधान सभा में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने एक  प्रस्ताव द्वारा पूरे देश के लिए एक ही चुनाव आयोग की व्यवस्था करायी। निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान करने  वाले संविधान के अनुच्छेद 324 को २६ नवंबर १९४९ को लागू किया गया ,जबकि अधिकतर अन्य प्रावधानों को २६ जनवरी १९५० से प्रभावी बनाया गया। निर्वाचन आयोग का औपचारिक गठन २५ जनवरी १९५० को हुआ। २१ मार्च १९५० को श्री  सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये गए। मई १९५२ में प्रथम राष्ट्रपति चुनाव से लेकर आगामी लोकसभा चुनाव तक सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुनने के लिए भारतीय न्यायालयों द्वारा अपनी महती भूमिका अदा की गयी है।          

Republic-day

आज भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र देश है।गणतांत्रिक शासन प्रणाली की उपलब्धियों के साथ -साथ नित नई -नई चुनोतियों से जूझना पड़ रहा है। जन आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए इन  चुनौतीयों का पूर्व आकलन कर इन्हें दूर करना होगा। प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार है।
१ -जनसँख्या की समस्या -भारत आगामी २० वर्षों में दुनिया का सबसे बड़ा आबादी वाला देश बन जायेगा। हमें भारत को स्थिर जनसँख्या वाला देश आगामी पाँच वर्षों के अंदर बनाना होगा।
२-पर्यावरण की समस्या-पर्यावरण -संतुलन के साथ औद्योगिक विकास का खाका तैयार हो।
३ -आतंकवाद की समस्या -आगामी दस वर्षों में आतंकवाद का स्वरुप बदल जायेगा। जाति ,धर्म,नस्ल पर आधारित आतंकवाद का प्रभाव बढ़ेगा। यह आतंक भारत में सुनियोजित तरीके से संबैधानिक संस्थाओं की आड़ में किया जायेगा।
४ रोजगार की समस्या ;-आगामी सात वर्षो में प्रत्येक क्षेत्र में प्रशासन की मिलीभगत से माफिया वर्ग रोजगार के साधनों को हड़पने का प्रयास करते रहेंगे ,जिसके कारण योग्य एवं समर्थ युवा वांछित रोजगार से वंचित होते रहेंगे।
५ - खाद्यान की समस्या-भारत की जनसँख्या का ५५%गरीबी में जीवनयापन कर रहा है ,दुनिया भर के गरीब लोगों का ३३% भारत में रह रहें हैं। विश्व में कुपोषण के शिकार बच्चों में ०३ में ०१ भारत में रहता है। आज भी ५०% भारतीय बच्चों की कुपोषण के कारण मृत्यु हो जाती है। भारत में आय समूहो का १० % समूह देश की आधी  आय का स्वामित्व लेकर बैठा है। शासकीय बैंको का यह समूह करोड़ो रूपया डकार गया है। खाद्यान उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। खाद्यान समस्या का एक प्रमुख कारण आय की असमानता एवं शासकीय योजनाओं में भ्रष्टाचार है।
६ -ऊर्जा की समस्या -भारत में ६० करोङ लोगों के पास बिजली नहीं है। भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में भी कोल माफिया,तेल -माफिया ,उद्योग माफिया सक्रिय हैं ,जिसके कारण वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसन्धान एवं  वैकल्पिक ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित नहीं किया गया। रतनजोत की खेती के नाम पर कुछ राज्यों द्वारा करोङों रूपये डकार लिए गए ,जिसे माफिया के दबाव में तहस -नहस कर दिया गया।
७ -आवास की समस्या -भारत में झोपड़पट्टी में रहनेवालों की संख्या लगभग ९. ५ (साढ़े नौ ) करोड़ हो गई है कांक्रीट ,पत्थर का जंगल ख़ड़े  करने  के बजाय गरीबों के लिए गाँव में आवास -नियोज न का प्रारूप पर कार्य करना होगा।
                                                                                                                                         शेष अगले बार 

गौतम बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग :-ईसा से ०६ शताब्दी पुर्व महात्मा गौतम बुद्ध ने कुशल जीवन के लिए अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया था। कुशल जीवन के लिए महात्मा बुद्ध के बताये हुए ०८ (आठ ) सूत्र आज भी प्रासंगिक है. ०१-सम्यक दृष्टि :-किसी घटना के तीन पक्ष होते हैं -तथ्य ,कथ्य एवं सत्य। घटना तथ्य है ,धारणा कथ्य है ,प्रेरणा सत्य है। हर घटना से एक शुभ प्रेरणा ग्रहण करें। यही सम्यक -दृष्टि है। ०२ :-सम्यक -स्मृति :-स्वयं को सही,श्रेष्ठ एवं निर्दोष तथा दूसरे को गलत ,तुच्छ एवं दोषी सिद्ध करना अहंकारी व्यक्ति का लक्षण है। प्रतिशोध की जगह क्षमा को अपनाएं। निरर्थक की जगह सार्थक को याद रखें। यही सम्यक स्मृति है। ०३ :-सम्यक कर्म :-असफलता का दायित्व स्वयं लें। सफलता का श्रेय अस्तित्व को दें। ईश्वर,भाग्य,परिस्तिथि या अन्य को दोष देना अनीति है। अपनी क्षमता को पहचानें ,पहलकर कर्म करें। यही सम्यक कर्म है। ०४:-सम्यक आजीविका :-कुछ कहने ,कुछ करने के पहले अपने भीतर झाँक लें कि मन शांत तो है। अशांत होने पर विश्राम और शांत होने पर सक्रिय रहें। परस्पर आदर,विश्वास और सहयोगपूर्वक कार्य करें। कार्यस्थल को स्वच्छ और कार्यजीवन को तनावमुक्त रखते हुए हमेशा खुश रहें। यही सम्यक आजीविका है। ०५ :-सम्यक वाणी :-विनम्र रहें। विनम्रतापूर्वक सबसे व्यवहार करें। किसी प्रकार का आडम्बर ,पाखंड न करें। कथनी -करनी में भेद न रखें। यही सम्यक वाणी है। ०६ :-सम्यक संकल्प :-शुभ संकल्प करें। सबके साथ उसे पूरा करने का प्रयास करें।लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्प में विकल्प का प्रयास न करें। संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता है। यही सम्यक संकल्प है। ०७ :सम्यक व्यायाम :-कर्म को निष्ठा पूर्वक करें। उद्देश्य प्राप्ति के लिए सतत चेष्टा करें ,फल सदा उदेश्य के अनुकूल हो ,ऐसा आग्रह न रखें। यही सम्यक व्यायाम है। ०८ :-सम्यक समाधि :-काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह ,अशांति ,क्षोभ ,तनाव भाव ,विचार के कारणों के प्रति सदा साक्षी रहें। साँसों का हिसाब रखे। यही सम्यक समाधि है।


प्राचीन मिश्र की भाषा :-प्राचीन मिश्र के लोग जिस भाषा में बोलते एवं लिखते थे ,उसे आगे चलकर लोग भूल गए। इन लेखों को कोई नहीं पढ़ सकता था। १९वी शताब्दी के आरम्भ में कोई यात्री मिस्र के रोजजेत्ता नामक नगर में मिला एक पत्थऱ यूरोप लाया। उस पर मिश्री और यूनानी भाषाओं में अभिलेख खुदे हुए थे ,जिनमे रजा के नाम के गिर्द आयत खींचा हुआ था। यूनानी और उस कल में ज्ञात दूसरी प्राचीन भाषाएं जाननेवाले एक युवा फ्रांसीसी विद्वान शेपोलियों का अनुमान था कि राजा के नाम में हर चित्राक्षर किसी निश्चित अक्षर का द्योतक है ,किन्तु कुछ स्वरों को छोड़ दिया गया है। विभिन्न भाषाओं के अभिलेखो की तुलना करके शेपोलियों ने कुछ चित्राक्षरों का अर्थ मालूम कर लिया। एस कम में उसे एक अन्य पत्थर पर खुदे अभिलेख से बड़ी सहायता मिली,जिसमें एक ऐसे नारी नाम के बगल में आयत बना हुआ था ,जिसे वह जनता था। ज्ञात अर्थ वाले चित्राक्षरों का इस्तेमाल करके शेंपोलियो दूसरे फिराऊनो के नाम पढ़ने में भी सफल हो गया। इस तरह प्राचीन मिश्री लेखों का पढ़ा जाना आरंभ हुआ। इसी प्रकार सिंधु लिपि को भी पढने का दावा कुछ लोगों द्वारा किया गया है ,किन्तु सिंधु लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

प्राचीन मिश्र की भाषा :-प्राचीन मिश्र के लोग जिस भाषा में बोलते एवं लिखते  थे ,उसे आगे चलकर लोग भूल गए। इन लेखों को कोई नहीं पढ़ सकता था।
  १९वी शताब्दी के आरम्भ में कोई यात्री  मिस्र के रोजजेत्ता नामक नगर में मिला एक पत्थऱ यूरोप लाया। उस पर मिश्री और यूनानी भाषाओं  में अभिलेख खुदे हुए  थे  ,जिनमे रजा के नाम के गिर्द आयत खींचा हुआ था। यूनानी और उस कल में ज्ञात दूसरी प्राचीन भाषाएं जाननेवाले एक युवा फ्रांसीसी विद्वान शेपोलियों का अनुमान था कि राजा के नाम में हर चित्राक्षर  किसी निश्चित अक्षर का द्योतक है ,किन्तु कुछ स्वरों को छोड़ दिया गया है। विभिन्न भाषाओं के अभिलेखो की तुलना करके शेपोलियों ने कुछ चित्राक्षरों का अर्थ मालूम कर लिया। एस कम में उसे एक अन्य पत्थर पर खुदे अभिलेख से बड़ी सहायता मिली,जिसमें एक ऐसे नारी नाम के बगल में आयत बना हुआ था ,जिसे वह जनता था। ज्ञात अर्थ वाले चित्राक्षरों का इस्तेमाल करके  शेंपोलियो दूसरे फिराऊनो के नाम पढ़ने में भी सफल हो गया। इस तरह प्राचीन मिश्री लेखों का पढ़ा जाना आरंभ हुआ।
                           इसी प्रकार सिंधु लिपि को भी पढने का दावा कुछ लोगों द्वारा किया गया है ,किन्तु सिंधु लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। 
21वीं सदी का तेरहवाँ  वर्ष भी गुजर गया। आज तक २१ वी सदी  के विकास  की परिभाषा भी हम गढ़  नहीं पाए। औपनिवेशिक काल से चली आ रही  विकास  के प्रारूप  से ही इस सदी के विकास का निर्धारण कर रहें हैं। जिसके कारण प्राकृतिक संसाधनों एवं मानव- श्रम का अंधाधुंध शोषण इस व्यवस्था में जारी है ।    

ब्रिटेन में प्रत्याशियों का चयन करनेवाले राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी को यह सुझाव दिया कि वे राजनीति में न आकर घर में अपने बाल -बच्चों का देखभाल करें अच्छा होगा। वह महिला अपने दल के सुझाव की अनदेखी कर चुनाव में कूद पड़ी। वह विजयी बनी ,अपने देश की प्रधान मंत्री भी। राजनीति में आकर अपने देश के हित में अनेक साहसपूर्ण निर्णय लिए। वह महिला थी ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थेचर। अरविन्द केजरीवाल भी अन्ना हजारे के सुझाव की अनदेखी कर राजनीति में आकर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने वाले है। देखना यह है कि क्या वे जनता से किये गए वादों को निभा पायेंगे। क्या वे भी राजनीति में आकर अपने साहस पूर्ण निर्णय से राजनीति को नई दिशा दे पाते है। प्रमोद श्रीवास्तव ,अम्बिकापुर ,छत्तीसगढ़


ब्रिटेन में प्रत्याशियों का चयन करनेवाले राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी को यह सुझाव दिया कि वे राजनीति में न आकर घर में अपने बाल -बच्चों का देखभाल करें अच्छा होगा। वह महिला अपने दल के सुझाव की अनदेखी कर चुनाव में कूद पड़ी। वह विजयी बनी ,अपने देश की प्रधान मंत्री भी। राजनीति में आकर अपने देश के हित में अनेक साहसपूर्ण निर्णय लिए। वह महिला थी ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थेचर। अरविन्द केजरीवाल भी अन्ना हजारे के सुझाव की अनदेखी कर राजनीति में आकर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने वाले है। देखना यह है कि क्या वे जनता से किये गए वादों को निभा पायेंगे। क्या वे भी राजनीति में आकर अपने साहस पूर्ण निर्णय से राजनीति को नई दिशा दे पाते है। प्रमोद श्रीवास्तव ,अम्बिकापुर ,छत्तीसगढ़


Sarguja-At a glance,part 03

 भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए सुदूर आदिवासी क्षेत्रों  में बिखरे पुरातात्विक सामग्रियों का अध्ययन आवश्यक है. सरकारी उपेक्षा के कारण अधिकांश प्राचीन मूर्तियाँ नष्ट हो गई है,कुछ चोरी हो गई है।सरगुजा का  डीपाडीह गाँव जो प्राचीन मूर्तियों का गांव है ,जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। फ़िलहाल आपके लिए कुछ छायांकन प्रस्तुत है। अंबिकापुर से १५ किमी दूर लखनपुर से होते हुवे महेशपुर गांव की धरोहर।
http://www.mitra-mandal.blogspot/com

MIning accident

सन १९०१ से लेकर आज तक की खान दुर्घटनाओं के विश्लेषण से हम यह पाते हैं कि खान -दुर्घटनायें  मानवीय असावधानी के कारण घटित होती हैं। खदानों  में खान दुर्घटनाएं  मुख्य रूप से खदान के अन्दर पानी निकल आने एवं आग /कोयले की धूल भडकने से तथा छत  गिरने से हुई है। भारत में खदान की सबसे बड़ी दुर्घटना दि २७-१२-१९७५ को चासनाला खदान में पानी निकल आने से हुई थी ,जिसमे ३७५ व्यक्तियो को अपनी जान गवानी पड़ी। दूसरी बड़ी खान दुर्घटना दि २८-०१-१९६५ को धोरी खदान में कोयले की धूल के विस्फोट से हुई थी ,जिसमे २६८ व्यक्तियों को अपनी जान गवानी पड़ी। तीसरी बड़ी दुर्घटना दि १८-१२-१९३६ में पोईडीह खदान में आग/कोयले की धूल भड़कने से हुई थी जिसमे २०९ व्यक्ति काल के गाल में समां गए। 

Sarguja-At a glance,Part-02

KITANA ACHCHHA HOTA

वर्षों बेकारी के आलम में
भटकने के बाद -
उसे तीन सौ रुपये की मास्टरी मिली।
इधर दो -दो बेटियाँ जवान
होती जा रहीं हैं।
वह सोचता है ,बेटी के बारे में
बेटी बड़ी हो रही है
और वह दरक रहा है।
इधर बच्चों को पढ़ाता है -
दहेज़ बुरी चीज है
और उधर खुद दहेज़ के बिना
कोई लड़का उसे अपनी बेटी के
शादी के लिए नहीं मिल रहा है।
उसके पाँव के जूते चरमरा रहे है ,
और वह परेशां बड़बड़ा रहा है
कितना अच्छा होता -
यदि वह लड़की का बाप न होता।
लड़की को देखता हूँ -
रोज उस मंदिर में ,
पत्थर के सामने गिड़गिड़ाती है
उसके बाप को उसके लिए
कोई वर मिल जाए
पर पत्थर तो पत्थर ही  होता है
वह लड़की प्रतिक्षा करती है -
पत्थर के पिघलने की।
शायद वह सोचती है
पत्थर से कोई इन्सान जैसा
भगवान निकलेगा।
वह उसके सर पर हाथरख कर
एवमस्तु ! कहकर अंतर्ध्यान हो जायेगा
और उसे घर आने पर -
अपनी मनोकामना पूरी होते हुए दिखेगी
पर वर्षों प्रतीक्षा के बाद भी
कोई भगवान नहीं आया।
पत्थर के फेर में हमने कितने युग
बरबाद किये
अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख दिए
यवन , तुरक  के हाथों में।
हमें वे लुटते गए
और हम -
पत्थरो के आगे झुकते गए।
कितना अच्छा होता
यदि इस कुँवारी लड़की को मालूम होता
कि ये पत्थर अनंतकाल तक
मौन ही रह जाएँगे।
सिर्फ एक जुटता ,अन्तर्विरोधों की
समझदारी की भाषा ही
हमें कुछ दे सकती है।
संवेदना शून्य विचारों की धरातल पर
खड़े हुए इस समाज को
ठुकराने के लिए
हमे एकजुट होना पड़ेगा।
कितना अच्छा होता
यदि यह मालूम हो जाये
हर कुँवारी लड़की ,कुँवारे लड़के व  उसके बाप को।
(लगभग ३२ वर्ष पूर्व प्रकाशित स्वरचित कविता )

aastha ka sooraj

मुठ्ठी भर -
आकाश पाने के लिए ,
उम्रभर इन्द्रधनुष रचता रहा।
मगर ,आस्था की मोड़ पर फैले कुहरों ने
दृस्टियो के सूरज को निगल खाया।
इसलिए ,हर इंद्रधनुष अपनी रंगीनियों में
हमें ही बुनते रहे।
बहुत चाहा -
धूप की एक सुनहली किरण लेकर
अपनी सूनी देहरी पर -
प्रभात का सन्देश
स्वर्णाक्षरों में  लिख दूँ।
परन्तु ,हर पग पर फैले
स्वार्थ ,ठग के काले बादलों ने
प्रभात किरणों को नोच डाला।
मैं जिंदगी भर तलाशता रहा
मुठ्ठी भर आकाश
आकाश में आस्था का एक सूरज।
(लगभग २९ वर्ष पूर्व किसी दैनिक में प्रकाशित स्वरचित कविता  का एक अंश )

naye sooraj kee talash

मै अब ख़ामोश हूँ।
लेकिन मेरी खामोशी का मतलब नहीं
उन मुठीभर पूजीपतियों , राजनेताओं  द्वारा
शब्दों  के खरीदने के अधिकारों का समर्थन।
मैं जानता हूँ -
शब्दों में वह आग छिपी है ,
जो मशाल बनकर मुट्ठी भर नेताओं
के काले कारनामों  को
खाक में मिला सकती है।
यह भी जानता हूँ -
यदि शब्दों में छिपी आग को
बाहर नहीं निकलते हैं तो
यह आग अपने को जला डालती है।
आज जबकि शब्द राजनेताओ
के हाथों में सिसकियाँ भर रहा है ,तो
शब्दों की व्यथाओं को
शब्दों में ही ,
रोशनाई से नहीं लिखा जा सकता है।
उनके द्वारा आज -
शब्दों  की सच्चाई पर
बारूदी ढेर फैलाया जा रहा है।
अर्थहीन शब्दों का
अर्थ लगाया जा रहा है।
ऐसे में आज सही लफ्जों को भी
लकवा मार गया है।
आज सत्ता मूल्यवान शब्दों को खरीदकर ,
परमाणु विस्फ़ोट के कगार पर
दुनिया को खड़ा कर दिए हैं।
परन्तु कोई पूँजीपति /राजनेता /सत्ता
इन मूल्यवान शब्दों  को खरीदकर
रोटी के विस्फोट पर
दुनिया को नहीं खड़ा करता है।
शब्दों को गलत हाथों में
बिकाहुआ देखकर
मेरे जिस्म का ख़ून खौल रहा है।
अन्तर्मन खुद मुझे कोस रहा है
लेकिन मेरी अपनी मजबूरियां हैं
इसलिए इस अंधेरे के ख़िलाफ़
ख़ामोश होकर -
एक नया सूरज गढ़ रहा हूँ।
(लगभग ३० वर्ष पूर्व प्रकाशित एवं आकाशवाणी अंबिकापुर से प्रसारित स्वरचित कविता )
इस देश में साहित्यकारों  की मृत्यु समाचार नहीं बनती है। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी चले गए ,परन्तु मीडिया ने उनकी सुध नहीं ली। विनम्र श्रद्धांजलि। 

Baal-Sahitya

हिंदी में बाल -साहित्य का अभाव है। बाल -साहित्य के नाम पर हिंदी में यथार्थ धरातल से परे भूत -प्रेत ,परी ,पक्षी से सम्बंधित कथाएँ  ही उपलब्ध थी। आज के युग में ये कथाएँ बच्चों  की जिज्ञासा एवं उनके मानसिक विकास में सहायक नहीं है। हिंदी साहित्य में श्री हरिकृष्ण देवसरे  ही एकमात्र  ऐसे लेखक है ,जिन्होंने अपना पूरा जीवन बाल -साहित्य सृजन में खपा दिए। प्रिंट -मीडिया के अतिरिक्त रेडियो ,दूरदर्शन के लिए उनका लेखन बच्चों के लिए ही समर्पित था।

                      पराग के माध्यम से  देवसरे जी ने बच्चों की जिज्ञासा एवं पढ़ने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया। बच्चों  की पत्रिका पराग को बच्चों  के साथ -साथ जवान एवं बूढें  भी उसे चाव से पढ़ते थे।
                                 बालको के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले देवसरे जी बाल दिवस पर ही हमसे जुदा हो गए।
                                     प्रणाम एवं  विनम्र श्रद्धांजलि। 

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