मै अब ख़ामोश हूँ।
लेकिन मेरी खामोशी का मतलब नहीं
उन मुठीभर पूजीपतियों , राजनेताओं द्वारा
शब्दों के खरीदने के अधिकारों का समर्थन।
मैं जानता हूँ -
शब्दों में वह आग छिपी है ,
जो मशाल बनकर मुट्ठी भर नेताओं
के काले कारनामों को
खाक में मिला सकती है।
यह भी जानता हूँ -
यदि शब्दों में छिपी आग को
बाहर नहीं निकलते हैं तो
यह आग अपने को जला डालती है।
आज जबकि शब्द राजनेताओ
के हाथों में सिसकियाँ भर रहा है ,तो
शब्दों की व्यथाओं को
शब्दों में ही ,
रोशनाई से नहीं लिखा जा सकता है।
उनके द्वारा आज -
शब्दों की सच्चाई पर
बारूदी ढेर फैलाया जा रहा है।
अर्थहीन शब्दों का
अर्थ लगाया जा रहा है।
ऐसे में आज सही लफ्जों को भी
लकवा मार गया है।
आज सत्ता मूल्यवान शब्दों को खरीदकर ,
परमाणु विस्फ़ोट के कगार पर
दुनिया को खड़ा कर दिए हैं।
परन्तु कोई पूँजीपति /राजनेता /सत्ता
इन मूल्यवान शब्दों को खरीदकर
रोटी के विस्फोट पर
दुनिया को नहीं खड़ा करता है।
शब्दों को गलत हाथों में
बिकाहुआ देखकर
मेरे जिस्म का ख़ून खौल रहा है।
अन्तर्मन खुद मुझे कोस रहा है
लेकिन मेरी अपनी मजबूरियां हैं
इसलिए इस अंधेरे के ख़िलाफ़
ख़ामोश होकर -
एक नया सूरज गढ़ रहा हूँ।
(लगभग ३० वर्ष पूर्व प्रकाशित एवं आकाशवाणी अंबिकापुर से प्रसारित स्वरचित कविता )
लेकिन मेरी खामोशी का मतलब नहीं
उन मुठीभर पूजीपतियों , राजनेताओं द्वारा
शब्दों के खरीदने के अधिकारों का समर्थन।
मैं जानता हूँ -
शब्दों में वह आग छिपी है ,
जो मशाल बनकर मुट्ठी भर नेताओं
के काले कारनामों को
खाक में मिला सकती है।
यह भी जानता हूँ -
यदि शब्दों में छिपी आग को
बाहर नहीं निकलते हैं तो
यह आग अपने को जला डालती है।
आज जबकि शब्द राजनेताओ
के हाथों में सिसकियाँ भर रहा है ,तो
शब्दों की व्यथाओं को
शब्दों में ही ,
रोशनाई से नहीं लिखा जा सकता है।
उनके द्वारा आज -
शब्दों की सच्चाई पर
बारूदी ढेर फैलाया जा रहा है।
अर्थहीन शब्दों का
अर्थ लगाया जा रहा है।
ऐसे में आज सही लफ्जों को भी
लकवा मार गया है।
आज सत्ता मूल्यवान शब्दों को खरीदकर ,
परमाणु विस्फ़ोट के कगार पर
दुनिया को खड़ा कर दिए हैं।
परन्तु कोई पूँजीपति /राजनेता /सत्ता
इन मूल्यवान शब्दों को खरीदकर
रोटी के विस्फोट पर
दुनिया को नहीं खड़ा करता है।
शब्दों को गलत हाथों में
बिकाहुआ देखकर
मेरे जिस्म का ख़ून खौल रहा है।
अन्तर्मन खुद मुझे कोस रहा है
लेकिन मेरी अपनी मजबूरियां हैं
इसलिए इस अंधेरे के ख़िलाफ़
ख़ामोश होकर -
एक नया सूरज गढ़ रहा हूँ।
(लगभग ३० वर्ष पूर्व प्रकाशित एवं आकाशवाणी अंबिकापुर से प्रसारित स्वरचित कविता )
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