MITRA MANDAL GLOBAL NEWS

aastha ka sooraj

मुठ्ठी भर -
आकाश पाने के लिए ,
उम्रभर इन्द्रधनुष रचता रहा।
मगर ,आस्था की मोड़ पर फैले कुहरों ने
दृस्टियो के सूरज को निगल खाया।
इसलिए ,हर इंद्रधनुष अपनी रंगीनियों में
हमें ही बुनते रहे।
बहुत चाहा -
धूप की एक सुनहली किरण लेकर
अपनी सूनी देहरी पर -
प्रभात का सन्देश
स्वर्णाक्षरों में  लिख दूँ।
परन्तु ,हर पग पर फैले
स्वार्थ ,ठग के काले बादलों ने
प्रभात किरणों को नोच डाला।
मैं जिंदगी भर तलाशता रहा
मुठ्ठी भर आकाश
आकाश में आस्था का एक सूरज।
(लगभग २९ वर्ष पूर्व किसी दैनिक में प्रकाशित स्वरचित कविता  का एक अंश )

No comments:

Post a Comment

Mitra-mandal Privacy Policy

This privacy policy has been compiled to better serve those who are concerned with how their  'Personally Identifiable Inform...