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Election- Commission

मैंने पिछले अंक में भारतीय लोकतंत्र की कुछ समस्याओं का जिक्र किया था। हमारी लोकतंत्र की एक प्रमुख समस्या यह है कि योग्य ,सक्षम ,अनुभवी ,सही  व्यक्ति आज की  राजनीति में  नहीं आना चाहते हैं। आज  चुनाव , देश -सेवा का मंदिर न होकर कैशीनों (जुआ -घर ) में तब्दील हो चुका है ,जहाँ लोग करोड़ों खर्च कर एन -केन प्रकारेन अरबों रुपयें कमाने के ध्येय से आ रहे है। जनप्रतिनिधि के प्रति हमारी घटती हुई आश्था  लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है। भारतीय लोकतंत्र को न्यायालयों के निर्णय ने ही मजबूती से बांध रखा है ,अन्यथा अधिकांश सांसद जाति ,धर्म,क्षेत्र ,  भाषा ,गुटबाजी में बध्ध होकर लोकतंत्र का चीरहरण कर रहे है।
                                 
           भारतीय संविधान  के अनुसार भारत में लोकतंत्र की व्यवस्था की गई है। यह संविधान  के बुनियादी ढाँचा का हिस्सा है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य एवं अन्य ( A I R 1973 S C 1461 )के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा इसे स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया गया है। लोकतंत्र जनता का ,जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया गया राज्य होता है। भारतीय संविधान की लोकतंत्र की अवधारणा निर्वाचन के जरिये संसद तथा राज्य विधानपालिकाओं  में जनप्रतिनिधित्व को मानती है। एन पी स्वामी वनाम निर्वाचन अधिकारी ,नामक्कल के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय दृष्टव्य है.(A I R 1952 S C 64 ). भारत जैसे बड़े देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की पद्धति कठिन है। अतः संविधान निर्माताओं ने अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की व्यवस्था की है। भारत में वर्त्तमान में कुल इक्यासी करोड़ पैतालीस लाख इक्यानवें हज़ार एक सौ चौरासी (814591184 ) मतदाता है ,कुल मतदाताओं में पुरुष ५२. ४ %एवं महिला मतदाताओं का प्रतिशत ४७. ६ है। विशाल मतदाताओं की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए लोकतंत्र की सफलता के लिए  तथा निष्पक्ष चुनाव होना अनिवार्य है। भारत में स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकार के रूप में निर्वाचन -आयोग की स्थापना की गई है।
  प्रारम्भ में संविधान -सभा की प्रारूप -समिति ने संघ तथा राज्यों के लिए अलग -अलग निर्वाचन आयोगों की व्यवस्था की थी ,जिसे संविधान सभा में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने एक  प्रस्ताव द्वारा पूरे देश के लिए एक ही चुनाव आयोग की व्यवस्था करायी। निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान करने  वाले संविधान के अनुच्छेद 324 को २६ नवंबर १९४९ को लागू किया गया ,जबकि अधिकतर अन्य प्रावधानों को २६ जनवरी १९५० से प्रभावी बनाया गया। निर्वाचन आयोग का औपचारिक गठन २५ जनवरी १९५० को हुआ। २१ मार्च १९५० को श्री  सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये गए। मई १९५२ में प्रथम राष्ट्रपति चुनाव से लेकर आगामी लोकसभा चुनाव तक सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यक्ति को जनप्रतिनिधि चुनने के लिए भारतीय न्यायालयों द्वारा अपनी महती भूमिका अदा की गयी है।          

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