हिंदी में बाल -साहित्य का अभाव है। बाल -साहित्य के नाम पर हिंदी में यथार्थ धरातल से परे भूत -प्रेत ,परी ,पक्षी से सम्बंधित कथाएँ ही उपलब्ध थी। आज के युग में ये कथाएँ बच्चों की जिज्ञासा एवं उनके मानसिक विकास में सहायक नहीं है। हिंदी साहित्य में श्री हरिकृष्ण देवसरे ही एकमात्र ऐसे लेखक है ,जिन्होंने अपना पूरा जीवन बाल -साहित्य सृजन में खपा दिए। प्रिंट -मीडिया के अतिरिक्त रेडियो ,दूरदर्शन के लिए उनका लेखन बच्चों के लिए ही समर्पित था।
पराग के माध्यम से देवसरे जी ने बच्चों की जिज्ञासा एवं पढ़ने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया। बच्चों की पत्रिका पराग को बच्चों के साथ -साथ जवान एवं बूढें भी उसे चाव से पढ़ते थे।
बालको के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले देवसरे जी बाल दिवस पर ही हमसे जुदा हो गए।
प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
पराग के माध्यम से देवसरे जी ने बच्चों की जिज्ञासा एवं पढ़ने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया। बच्चों की पत्रिका पराग को बच्चों के साथ -साथ जवान एवं बूढें भी उसे चाव से पढ़ते थे।
बालको के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले देवसरे जी बाल दिवस पर ही हमसे जुदा हो गए।
प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
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