नयी दिल्ली, छह नवंबर :भाषा: विधि आयोग ने आपराधिक कानून के प्रावधनों में विसंगतियों को हटाने और अनुरूपता लाने के लिए काम शुरू किया है। इसके लिए उन्हें स्पष्ट बनाया जाएगा और जमानत कानून की उन धाराओं को हटाया जाएगा जो अदालत से राहत मिलने के बावजूद गरीबों के लिए जेल से बाहर आने में परेशानियां पैदा करती हैं।
पैनल भारतीय दंड संहिता :आईपीसी: दंड संहिता प्रक्रिया :सीआरपीसी: और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों का यह पता लगाने के लिए फिर से पुन:परीक्षण कर रहा हेै कि क्या उनमें संशोधन की जरूरत है।
विधि आयोग के अध्यक्ष बीएस चौहान ने कहा कि कुछ प्रावधानों का परीक्षण करने की जरूरत है जैसे मजिस्ट्रेट की शक्ति और जमानत देने की शक्ति, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जिसमें गरीब लोगों को राहत मिलने के बावजूद वे जेल में है क्योंकि जमानत मुचलका और स्थानीय जमानत की उन्हें दरकार होती है।
जमानत के मुद्दे के अलावा चौहान ने कहा कि आयोग को केंद्र की तरफ से एक संदर्भ मिला है जिसमें मजिस्ट्रेट की शक्ति में अनुरूपता को दूर करने के लिए कहा गया है।
उन्होंने कहा कि सीआरपीसी में मजिस्ट्रेट से संबंधित प्रावधानों में अनुरूपता है जो मजिस्ट्रेट को मामलों में मुकदमा चलाने की इजाजत तो देता है लेकिन सात साल से ज्यादा की सजा देने से रोकता है और कुछ अपराधों तो ऐसे हैं जिसमें मुकदमे की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है लेकिन उनमें अधिकतम सजा उम्र कैद है।
पैनल भारतीय दंड संहिता :आईपीसी: दंड संहिता प्रक्रिया :सीआरपीसी: और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों का यह पता लगाने के लिए फिर से पुन:परीक्षण कर रहा हेै कि क्या उनमें संशोधन की जरूरत है।
विधि आयोग के अध्यक्ष बीएस चौहान ने कहा कि कुछ प्रावधानों का परीक्षण करने की जरूरत है जैसे मजिस्ट्रेट की शक्ति और जमानत देने की शक्ति, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जिसमें गरीब लोगों को राहत मिलने के बावजूद वे जेल में है क्योंकि जमानत मुचलका और स्थानीय जमानत की उन्हें दरकार होती है।
जमानत के मुद्दे के अलावा चौहान ने कहा कि आयोग को केंद्र की तरफ से एक संदर्भ मिला है जिसमें मजिस्ट्रेट की शक्ति में अनुरूपता को दूर करने के लिए कहा गया है।
उन्होंने कहा कि सीआरपीसी में मजिस्ट्रेट से संबंधित प्रावधानों में अनुरूपता है जो मजिस्ट्रेट को मामलों में मुकदमा चलाने की इजाजत तो देता है लेकिन सात साल से ज्यादा की सजा देने से रोकता है और कुछ अपराधों तो ऐसे हैं जिसमें मुकदमे की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है लेकिन उनमें अधिकतम सजा उम्र कैद है।
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