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| युवाओं को परिवर्तन की मुख्यधारा में लाना | |
* सुधीरेन्द्र शर्मा
युवाओं की उद्यमी महत्वाकांक्षा और उपभोक्तावादी इच्छाओं को उनके दृष्टिकोण और विवेकपूर्ण कार्यों में नैतिकता और नैतिकमूल्यों को विकसित करने हेतु विवेकानंद का जन्म दिवस 12 जनवरी देश के युवाओं को समर्पित है। आज के युवा बाजार संचालितउपभोक्तावादी संस्कृति के अत्यधिक दिखावे से सम्मोहित हैं।
वृद्ध कार्यशक्ति के जोखिम का सामना करने वाली अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत वर्ष 2020 तक कार्यआयुवर्ग में अपनी जनसंख्या के 64 प्रतिशत के साथ देश का सबसे युवा राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। यह ‘जनसांख्यिकीयलाभांश’ देश के लिए एक महान अवसर प्रदान करता है। सिर्फ संख्या में ही नहीं अपितु देश की सकल राष्ट्रीय आय में भी युवा 34 प्रतिशत योगदान करते हैं।
2020 तक 28 वर्ष की औसत आयु के साथ भारत की जनसंख्या के 1.3 बिलियन से अधिक होने की संभावना है, जो चीन औरजापान की औसत आयु की तुलना में काफी कम है। चीन के (776 मिलियन) के बाद भारत की कामकाजी जनसंख्या में 2020 तक 592 मिलियन तक वृद्धि की संभावना है। यह इस तथ्य की ओर संकेत देती है कि युवा देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्णयोगदान देंगे।
हालांकि एक आभासीय दुनिया से अत्यधिक घनिष्ठ रूप से जुड़े होने के कारण इस आकांक्षा वर्ग को राष्ट्र निर्माण के प्रयासों मेंयोगदान करने के लिए निर्देशों की आवश्यकता होती है। उत्पादकता सुधार में उनकी श्रम सहभागिता को बढ़ाना ही उनकी ऊर्जा कोसाधने का अंग होगा। चूंकि उनकी विचारधारा प्रौद्योगिकी के द्वारा प्रति स्थापित हो चुकी है, इसलिये युवा शायद ही कभी अपनेको इस दुनिया से परे देखते हैं।
इस तरह के पीढ़ी परिवर्तन ने पहले की किसी भी पीढ़ी से एक बेहद अलग पीढ़ी का निर्माण किया है। युवा स्वयं को स्वतंत्रता केपश्चात् की समयावधि की राष्ट्र निर्माण गाथा से दूर महसूस करते है और अपने को एक ऐसी दुनिया का प्राणी समझते है, जोआशा, प्रेम और दिव्य आशावाद के रूप में बढ़ रही है। इस प्रकार राष्ट्रीय युवा दिवस देश के लोकाचार को युवाओं से जोड़ने का एकअवसर है।
हालांकि 12 जनवरी को 1985 से प्रति वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य सरकार की युवा लक्षितयोजनाओं और कार्यक्रमों को राष्ट्रीय युवा नीति 2014 के द्वारा निर्देशित करना है, जिसके तहत राष्ट्रों के समुदाय में अपना सहीस्थान प्राप्त करने के लिए सक्षम भारत के माध्यम से उनकी पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने हेतू देश के युवाओं को सशक्त बनाना है।
भारत सरकार वर्तमान में युवा लक्षित (उच्च शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल के लिए 37 हजार करोड़ रूपये) गैर लक्षित (खाद्य सब्सिडी, रोजगार के लिए 55 हजार करोड़ रूपये) के कार्यक्रमों के माध्यम से प्रति वर्ष युवा विकास कार्यक्रमों पर 92 हजारकरोड़ रूपये और प्रत्येक युवा पर व्यक्तिगत तौर से करीब 2710 रूपये से अधिक का निवेश करती है।
इसके अलावा राज्य सरकारें और अन्य बहुत से हितधारक युवा विकास और उत्पादक युवा भागीदारी को सक्षम बनाने की दिशा मेंसहायता के लिए कार्य कर रहे है, हालांकि गैर-सरकारी क्षेत्र में युवा मुद्दों पर कार्य कर रहे व्यक्तिगत संगठन छोटे और बंटे हुए हैंऔर विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
हालाकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी इतिहासों में युवा परिवर्तन राष्ट्रों के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर नईप्रौद्योगिकियों के सृजन में अग्रदूत रहे हैं जिन्होंने कला, संगीत और संस्कृति के नए स्वरूपों का भी सृजन किया। इसलिए युवाओंके विकास में सहायता और प्रोत्साहन सभी क्षेत्रों और हितधारकों में सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।
युवा को एक कैडर के रूप में निर्मित करने की चुनौती स्वयं की छोटी सोच से परे कार्य करने और सोचने का मार्ग तय करती है। येकार्य उन्हें उपभोग की विचारधारा से ऊपर उठने, व्यापक सांस्कृतिक विविधता की सराहना करने के लिए विचार करने और एकऐसा बहु-आयामी परिवेश तैयार करने में मदद करती है, जहां वे सहजता से धर्म, यौन अभिविन्यास और जातियों में भेद किये बिनाएक दूसरे को गले लगाने को तैयार हैं।
युवाओं को दार्शनिक दिशा-निर्देश देने के मामले में स्वामी विवेकनंद से बेहतर कौन हो सकता है, जिनके 1893 में विश्व धर्म संसद मेंदिए गए संभाषण ने उन्हें ‘पश्चिमी दुनिया के लिए भारतीय ज्ञान का दूत’ के रूप में प्रसिद्ध किया था। स्वामी विवेकनंद का माननाथा कि एक देश का भविष्य उसके युवाओं पर निर्भर करता है और इसीलिए उनकी शिक्षाएं युवाओं के विकास पर केंद्रित थीं।
पिछली पीढ़ियों की तुलना में एक वैचारिक समानता से लगाव को देखते हुए देश का युवा इन शिक्षाओं को ग्रहण करने के लिए बेहतरस्थिति में है और वर्तमान पीढ़ी के द्वारा इन्हें आसानी से इन्हें आत्मसात किया जा सकता है। ये नई पीढ़ी एक बड़ी बाधा भी होसकती है क्योंकि इन्होंने अपने आप को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों से दूर कर लिया है।
हालांकि जे वाल्टर थॉम्पसन का एक अध्ययन आशा कि किरण लेकर आता है उनके अनुसार आज का युवा ने उपभोग का दूसरापहलु देखा है और वह बेयौन्स की तुलना में मलाला से अधिक प्रेरित है। इस पीढ़ी को नैतिक उपभोग आदतों, स्वदेशी डिजिटलप्रौद्योगिकी के उपयोग, उद्यशीलता महत्वकांक्षा और प्रगतिशील विचारों की विशेषता से चित्रित किया जा सकता है। वास्तव मेंउन्हें सही दिशा के लिए दार्शनिक मार्ग दर्शन की आवश्यकता है और राष्ट्रीय युवा दिवस इस मामले में युवाओं को परिवर्तन कीमुख्यधारा में लाने के लिए एक सबसे उचित मंच है।
* डॉ. सुधीरेन्द्र शर्मा विकास मुद्दों पर शोध और लेखन करते हैं। इस लेख में व्यक्त विचार स्वयं लेखक के हैं।
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पूरी सूची – 09.01.2017
वीके/एसएस/सीएस/जीआरएस-98 |
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