लोकतान्त्रिक व्यवस्था में मीडिया की भूमिका नागरिकों की स्वतंत्रता ,समानता ,शिक्षा के अधिकारों की रक्षा तथा वर्ण ,जाति ,संप्रदाय वर्ग आदि के आधार पर विभाजित समाज की एकजुटता बनाये रखने में होनी चाहिए। मीडिया विषय की प्रकृति को मैं अन्य विषयों की प्रकृति से भि न्न नहीं मानता हूँ। मीडिया एक ऐसा विषय है जो हमारी दिनचर्या में ऐसा घुलमिल गया है जिससे अलग रहना नामुमकिन है।
मीडिया के स्वरुप को मैं तीन वर्गों में विभाजित कर सकता हूँ। प्रथम कार्पोरेट घराने की मीडिया ,द्वितीय संभ्रांत वर्ग की मीडिया ,तृतीय आमवर्ग की मीडिया संभ्रांत वर्ग की मीडिया से मेरा आशय मीडिया के उस स्वरुप से है जिसका संचालन सत्ता के नियंता के हाथों में है ,अर्थात इस वर्ग में वे लोग शामिल हैं जो सुख सुविधाओं से संपन्न हैं। राजनीति में ग़हरी पैठ रखते हैं। इस प्रकार संभ्रांत वर्ग की मीडिया एवं कार्पोरेट- मीडिया एक दूसरे की पूरक हैं ,जिसका संचालन निगम के रूप में समाज के उच्च तबकों द्वारा अपने उत्पाद एवं समाज- सेवा का प्रचार-प्रसार कर मुनाफा कमाना है। इस वर्ग की मीडिया मुनाफा कमाने के साथ -साथ सत्ता की नियंता भी बनी रहती है। संभ्रांत वर्ग /कारपोरेट वर्ग की मीडिया में प्रशासनिक - अधिकारियों ,राजनीतिज्ञओं ,व्यावसायिक -प्रबंधकों के लेख,आलेख प्रकाशित , प्रसारित किये जाते हैं। समाचार के रूप में अपने उत्पाद का प्रचार -प्रसार ,संभ्रांत -वर्ग की जीवन चर्या ,क्लबो के समाचार ,अपराध ,क्रिकेट ,फ़िल्मी गपशप ,रहस्य रोमांस ,धार्मिक- आडंबर-उपदेश से भरपूर समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते हैं। इनके प्रभाव से लोकतान्त्रिक -व्यवस्था की संसद भी अछूती नही रहती है। वास्तविकता यह है कि संभ्रांत /कॉर्पोरेट वर्ग की मीडिया देश की मूल समस्याओं से लोगों का ध्यान बटाने एवं हटाने का काम करती हैं। इस वर्ग की मीडिया आपको क्रिकेट के जूनून में ,ब्रम्हाण्ड -सुंदरी प्रतियोगिता एवं आपराधिक -दुनिया की विभत्स दृश्यों की कल्पनाओं में धकेल कर अपने गैरजरूरी उत्पाद /सेवा को बेचने का कार्य करती हैं।
मीडिया के उक्त स्वरुप के साथ -साथ जबतक हम प्रोपगंडा का जिक्र न करे यह आलेख अधूरा रह जायेगा। मीडिया में प्रोपेगंडा की शुरूवात प्रथम विश्वयुद्ध तथा विकास द्वितीय विश्युद्ध के दौरान किया गया। प्रोपगंडा के माध्यम से विश्वयुद्ध में भाग ले रहे सरकारों द्वारा विश्वयुद्ध की सही तस्वीर न प्रस्तुत कर अपने देश की जनता को भ्रम के भवर में डालने का काम बखूबी किया गया.,.इसी प्रोपेगंडा की तकनीक को विकसित कर विभिन्न देशों की सरकार अपने स्वार्थ की राजनीति को सुदृढ़ बनाये रखने में जुटी हुई है।
अस्तु मैं यह दावे के साथ कह सकता हू कि आधुनिक भारतीय मीडिया को लोकतंत्र के लोक तक पहुचने के लिए खेतों, खलिहानों ,कल-कारखानों ,मलिनबस्तियों के पगडंडियों से ही होकर गुजरना पड़ेगा। यह कार्य आमवर्ग के लघुस्तर की मीडिया द्वारा ही किया जा सकता है।
प्रमोद श्रीवास्तव
मीडिया के स्वरुप को मैं तीन वर्गों में विभाजित कर सकता हूँ। प्रथम कार्पोरेट घराने की मीडिया ,द्वितीय संभ्रांत वर्ग की मीडिया ,तृतीय आमवर्ग की मीडिया संभ्रांत वर्ग की मीडिया से मेरा आशय मीडिया के उस स्वरुप से है जिसका संचालन सत्ता के नियंता के हाथों में है ,अर्थात इस वर्ग में वे लोग शामिल हैं जो सुख सुविधाओं से संपन्न हैं। राजनीति में ग़हरी पैठ रखते हैं। इस प्रकार संभ्रांत वर्ग की मीडिया एवं कार्पोरेट- मीडिया एक दूसरे की पूरक हैं ,जिसका संचालन निगम के रूप में समाज के उच्च तबकों द्वारा अपने उत्पाद एवं समाज- सेवा का प्रचार-प्रसार कर मुनाफा कमाना है। इस वर्ग की मीडिया मुनाफा कमाने के साथ -साथ सत्ता की नियंता भी बनी रहती है। संभ्रांत वर्ग /कारपोरेट वर्ग की मीडिया में प्रशासनिक - अधिकारियों ,राजनीतिज्ञओं ,व्यावसायिक -प्रबंधकों के लेख,आलेख प्रकाशित , प्रसारित किये जाते हैं। समाचार के रूप में अपने उत्पाद का प्रचार -प्रसार ,संभ्रांत -वर्ग की जीवन चर्या ,क्लबो के समाचार ,अपराध ,क्रिकेट ,फ़िल्मी गपशप ,रहस्य रोमांस ,धार्मिक- आडंबर-उपदेश से भरपूर समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते हैं। इनके प्रभाव से लोकतान्त्रिक -व्यवस्था की संसद भी अछूती नही रहती है। वास्तविकता यह है कि संभ्रांत /कॉर्पोरेट वर्ग की मीडिया देश की मूल समस्याओं से लोगों का ध्यान बटाने एवं हटाने का काम करती हैं। इस वर्ग की मीडिया आपको क्रिकेट के जूनून में ,ब्रम्हाण्ड -सुंदरी प्रतियोगिता एवं आपराधिक -दुनिया की विभत्स दृश्यों की कल्पनाओं में धकेल कर अपने गैरजरूरी उत्पाद /सेवा को बेचने का कार्य करती हैं।
मीडिया के उक्त स्वरुप के साथ -साथ जबतक हम प्रोपगंडा का जिक्र न करे यह आलेख अधूरा रह जायेगा। मीडिया में प्रोपेगंडा की शुरूवात प्रथम विश्वयुद्ध तथा विकास द्वितीय विश्युद्ध के दौरान किया गया। प्रोपगंडा के माध्यम से विश्वयुद्ध में भाग ले रहे सरकारों द्वारा विश्वयुद्ध की सही तस्वीर न प्रस्तुत कर अपने देश की जनता को भ्रम के भवर में डालने का काम बखूबी किया गया.,.इसी प्रोपेगंडा की तकनीक को विकसित कर विभिन्न देशों की सरकार अपने स्वार्थ की राजनीति को सुदृढ़ बनाये रखने में जुटी हुई है।
अस्तु मैं यह दावे के साथ कह सकता हू कि आधुनिक भारतीय मीडिया को लोकतंत्र के लोक तक पहुचने के लिए खेतों, खलिहानों ,कल-कारखानों ,मलिनबस्तियों के पगडंडियों से ही होकर गुजरना पड़ेगा। यह कार्य आमवर्ग के लघुस्तर की मीडिया द्वारा ही किया जा सकता है।
प्रमोद श्रीवास्तव
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