भारत में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू होने पर भी वास्तविकता यह है कि यहाँ २९. ८ प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन -यापन के लिए मजबूर हैं। विगत दशक में लगभग दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं ,तथा दो हजार चार सौ किसान प्रतिदिन खेती से मुँह मोड़ रहे है। ९५ प्रतिशत लोगो की सम्पूर्ण आय पांच लाख चालीस हजार रूपये से कम है,जबकि ७०० ( सात सौ ) पूजीपतियों के पास पचास हजार करोड़ रूपये से अधिक की संपत्ति है।
आजादी के ६७ साल से यह देश असमान ,असंगत ,असहज ,अविवेकपूर्ण विकास का शिकार हो रहा है।राजनीतिक इच्छा -शक्ति के अभाव में हमारी प्राथमिकता भूख से लड़ने की न होकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गैर -जरूरी उत्पाद कोका -कोला ,पेप्सी के पेय -पदार्थ ,सौंदर्य -प्रसाधन , लग्जरी बाईक ,सूरा को गांव के बाजार तक लाकर विकास की गाथा लिखने तक सीमित रह गई है।
आज हमें न अपने देश की गरीबी पर शर्म आती है ,न अपने देश के अमीरों पर।
आजादी के ६७ साल से यह देश असमान ,असंगत ,असहज ,अविवेकपूर्ण विकास का शिकार हो रहा है।राजनीतिक इच्छा -शक्ति के अभाव में हमारी प्राथमिकता भूख से लड़ने की न होकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गैर -जरूरी उत्पाद कोका -कोला ,पेप्सी के पेय -पदार्थ ,सौंदर्य -प्रसाधन , लग्जरी बाईक ,सूरा को गांव के बाजार तक लाकर विकास की गाथा लिखने तक सीमित रह गई है।
आज हमें न अपने देश की गरीबी पर शर्म आती है ,न अपने देश के अमीरों पर।
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